“चलो दोस्त आज मुद्दत बाद
मिले हैं, बैठे हैं साथ तो फिर
आज तो ढीला होना होगा
दोस्त के संग एक पेग तो पीना होगा
मंगालें फिर दो रम और कोक?”
“मुद्दत बाद ज़रूर मिले हैं
दोस्ती का पैमाना थोड़ा बदल गया है
अगर पीने से संगत और भाएगी
या तुम्हे अपनी जल्दी चढ़ जायेगी
तो मंगलो फिर दो रम और कोक।”
“नहीं नहीं.. तुम तो बुरा मान गए
तुम्हे बस इतना दिख लाना है
दोस्ती का कोई पैमाना नहीं होता
पर दोस्त के साथ पीने सा सुख और नहीं होता
कहो फिर मंगालें दो रम और कोक?”
“बुरा इतने में क्यों मानूंगा
मैं तो बस वो बातों में नशा खोज रहा हूँ
जो बिना रम की कोक में भी मिल जाता था
मुझे तो वो नशा सरपट चढ़ जाता था
कहो तो आज ट्राई करें बिना रम के दो कोक?”