बारिश को हरे पत्तों से टपकते देखना
तकियों के बीच किताब के पन्नों में खो जाना
चाय कॉफ़ी कि भाप के बीच
बातों कि गर्माहट महसूस कर पाना
– ये वो ज़िन्दगी कि चंद खुशियाँ हैं
जिन्हे यादों में समेट लेना चाहिए
जैसे घास पर नंगे पाँव
किसी का हाथ पकड़कर चलना याद हो
ये वो लम्हे हैं जिनकी उपमा नहीं
इनकी तुलना करनी भी नहीं
क्योंकि ये ख़ुदी में पूरे हैं
औरों से अलग और ज़हन में निश्चल
ये सुकून देते हैं – हर बार
याद दिलाते हैं कि ज़रूरतों का असल
तो काफ़ी सस्ता है और मन तो बेहेल जाता है
मगर न जाने देह किस दौड़ में रह जाता है?