अलग तुम्हे उसमें क्या लगा?
सोच थोड़ी अलग होगी
वह तो अपनों की भी होती है
उसकी थोड़ी ज़्यादा होगी
लेकिन फिर क्या हुआ?
क्या फर्क हुआ उसके कारण?
उसको भी तो नीला आसमान
खिलती धुप, वो पहली बारिश
ये अच्छे लगते होंगे
फिर बीते पैमानों पर
क्यों तुम इंसानियत नापते?
वो बातें अब बीत गयीं हैं
उन्हें जाने दो तो बेहतर है
कल कल का बंदी नहीं हो
वो आज से बने तो बढ़िया
क्योंकि कल तुम्हारे हाथ में न था
आज है और शायद कल भी
रह जाए बंद मुट्ठी मे
तो बढ़ाओ हाथ थोड़ा वो भी बढ़ाएगा
बीच में मिल जाएंगे दोनों
तो सफ़र ये और निभ जायेगा
और वो भी कल अपना सा बन जायेगा