ओ मेरे नेता

ओ मेरे नेता,
क्यों तू पैसों को है पूजता?

रिश्वतों के काले बाज़ार में क्यों

न तेरा हाथ दूझता?

इस देश की सेवा में,
एक बापू ने जाँ निसार की मगर,
अब अगर वो हँस रहे
तो सिर्फ सौ-हज़ार के नोटों पर |

जब विश्व के शीर्ष पर हो रही
भारत की बुलंद पुकार है
तो क्यों देश के अखबारों में भरे
तेरी काली कर्तूतों के सार हैं?

क्यों देश के उज्जवल भविष्य को
काली स्याही से है लिख रहा ?
बलिदानों की धरोहर का हो कर भी
क्यों कौड़ियों में बिक रहा ?

अपनी कुर्सी को ताजो तख़्त ना समझ,
सेवक है तू राजा नहीं,
देश की आवाज़ बन
भ्रष्टाचार का टूटा बाजा नहीं  |

क्या देश को ठगने के सिवा
तुझे और कुछ ना सूझता ?
ओ मेरे नेता
क्यों तू  पैसे को है पूजता?

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