बारिश के सिरहाने बैठे
बूंदों को मैं गिनता हूँ
छोटी, बड़ी – सभी बूंदों पे
ये चंद पंक्तियाँ लिखता हूँ
किसी तल को विदा करके
ये बूँदें मुझसे मिलने आई हैं
हवाओं की मीठी बांसुरी संग
टिप टिप का मेघ राग लायी हैं
अपने स्पर्श मात्र से सबको
शीतल करती इनकी धारा ये
जैसे अम्बर की भेंट
धरा को बहलातीं सदा ये
बादलों से आकृत होकर भी
इनकी शैली उन्मुक्त है
जीवन काल संक्षिप्त होकर भी
कई जीवनों से उपयुक्त है |