आगे बढ़ते बढ़ते ,
कुछ पीछे छोड़ आये,
ये कहाँ आ गए हम?
पन्नों को पलटते,
जो कहानी भूल आए,
ये कहाँ आ गए हम?
रास्तों से लड़ते,
जो मंजिल खो आए,
ये कहाँ आ गए हम?
दूसरों से मिलते हुए,
खुद का हाथ छोड़ आये.
ये कहाँ आ गए हम?
कुछ पीछे छोड़ आये,
ये कहाँ आ गए हम?
पन्नों को पलटते,
जो कहानी भूल आए,
ये कहाँ आ गए हम?
रास्तों से लड़ते,
जो मंजिल खो आए,
ये कहाँ आ गए हम?
दूसरों से मिलते हुए,
खुद का हाथ छोड़ आये.
ये कहाँ आ गए हम?
i wrote a very similar poem few days back..
LikeLike
Cool ! gimme a link, would like to read it… 🙂
LikeLike